कैसर बाग़ १८४८ - १८५० में बना था. नवाब वाजिद अली शाह मेले के दिनों में यहाँ जोगिया कपड़े पहन कर फकीरों की तरह बैठा करते थे....
लुट रही है दौलत-ए दीदार कैसर बाग़ में : मिसल-ए गुल सब हो गए ज़रदार कैसर बाग़ में,
गाते हैं मुर्गान गुलशन पींग देती है सदा : जबकि झूला झूलता है यार कैसर बाग़ में.