Friday, April 8, 2011

कैसर बाग़

कैसर बाग़ १८४८ - १८५० में बना था. नवाब वाजिद अली शाह मेले के दिनों में यहाँ जोगिया कपड़े पहन कर फकीरों की तरह बैठा करते थे....


लुट रही है दौलत-ए दीदार कैसर बाग़ में :  मिसल-ए गुल सब हो गए ज़रदार कैसर बाग़ में,
गाते हैं मुर्गान गुलशन पींग देती है सदा   :   जबकि   झूला   झूलता   है  यार  कैसर बाग़   में.
- फ़लक़

Monday, April 4, 2011

पेश-ए नज़र है सैर-ए गुलिस्तान-ए लखनऊ


मुनीर शिकोहाबादी
पेश-ए नज़र है सैर-ए गुलिस्तान-ए लखनऊ
हर एक सिमत नूर का जलवा है देख लो
परियों की दीद है सर-ए बाज़ार रात दिन
हर कूचे में तिलस्म का मेला है देख लो
फैयाज़ हैं तमाम अमीर इस दयार के 
घर घर में रक़्स-ओ ऐश का जलसा है, देख लो
इस शहर को मैं क्यों न कहूँ जन्नत-ए नहं
इस का नज़ीर-ए हिंद में अंक़ा है देख लो

پیش نظر ہے سیر گلستان لکھنؤ
ہر ایک سمت نور کا جلوہ ہے دیکھ لو
پریوں کی دید ہے سر بازار رات دن
ہر کوچے میں طلسم کا میلا ہے دیکھ لو
فیاض ہیں تمام امیر اس دیار کے
گھر گھر میں رقص و عیش کا جلسا ہے، دیکھ لو
اس شہر کو میں کیوں نہ کہوں جنّت نہم
اس کا نظیر ہند میں عنقا ہے دیکھ لو
منیر شکوہ آبادی