Monday, January 16, 2012

कत्थक नृत्य : लखनऊ

यूं तो कत्थक नृत्य की शुरुआत जा कर बाबा भोलेनाथ से जुड़ जाती है। लेकिन लखनऊ में इसका नाम हमारे बादशाह वाजिदअली शाह से पहले सुनाई नहीं पड़ता। उनके पहले इस नृत्य की दास्ताँ ब्रजभूमि की रासलीला में खो जाती है। यह ज़रूर है कि वाजिदअली शाह की कोशिशों ने इसे रास लीला से अलग करके एक अद्भुत रूप प्रदान किया जो आज हमारे सामने है। 

लेकिन उनकी कोशिशों में उनके कत्थक नृत्य के उस्ताद ठाकुर प्रसाद का भी बहुत बड़ा योगदान है। ठाकुर प्रसाद का नाम तो यदाकदा इतिहास के पन्नों में दिख भी जाता है। मगर उनके बड़े भाई दुर्गा प्रसाद, जो शायद इस काम में बराबर के हिस्सेदार थे, का नाम तो अब बिलकुल ही भुलाया जा चुका है। ये दोनों ही भाई मुहम्मद अली शाह के जमाने से ही लखनऊ के प्रसिद्ध नृतक रहे थे। 

उनके पिता प्रकाश जी का नाम भी नृत्य के बड़े महिरीन में लिया जाता था। उनके समकालीन नृतकों में हेलाल जी और दयालु जी का नाम आता है, जिन्हों ने नवाब सादतअली ख़ान के ज़माने से लेकर नसीरुद्दीन हैदर तक अपने नृत्य से लखनऊ का नाम रौशन रखा। 

आसफुद्दौला के ज़माने में खुशी महाराज नाम के बड़े उस्ताद मौजूद थे। मैं यह मालूम नहीं कर सका कि जब अवध की गद्दी लखनऊ आई तो खुशी महाराज आसफुद्दौला के साथ आने वालों में से थे, या पहले से यहाँ मौजूद थे, क्योंकि उनका नाम शुजाउद्दौला के समकालीन भी आता है।
Kathak Dancer Wajid Ali Shah