Friday, April 29, 2011

लखनऊ में खाओ तो पुलाव

देहली में बिरयानी का ज्यादा रिवाज है और था. मगर लखनऊ की नफा़सत ने पुलाओ को उस पर तरजीह दी. अवाम की नज़र में दोनों क़रीब क़रीब बल्कि एक ही हैं. मगर बिरयानी में मसाले की ज्यादती से, सालन मिले हुए चावलों की शान पैदा हो जाती है. और पुलाओ में इतनी लताफ़त, निफा़सत और सफा़ई ज़रूरी समझी जाती है कि बिरयानी उस के सामने मल्गू़बा सी मालूम होती है.

- मौलाना अब्दुल हलीम शरर लखनवी