Wednesday, June 13, 2012

आम क्या हैं ख़ुदा की कुदरत हैं; जिन से हिंदोस्तान जन्नत है

दुनिया में कहीं भी अगर आम का नाम लिया जाता है तो भारत का नाम उसके साथ जुड़ ही जाता है। आम का नाम भारत में बहुत ही आम है। और ऐसे ही आम हैं यहाँ आम को चाहने वाले –
हिन्द के सब मेवों का सरदार है | रौनक़ हर कूचा ओ बाज़ार है (इसमाईल मेरठी)

आम को चाहने वाले भारत के हर कोने में मौजूद हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब का आम खाने का क़िस्सा तो दुनिया जानती है। ऐसे ही यहाँ लखनऊ में भी थे कोई अब्दुल बाक़ी साहब। आम ऐसे पसंद आये कि पूरी मसनवी (बहुत लंबी कविता) लिख मारी। कुल बीस पेज की यह मसनवी ‘अम्बा नामा’ 1922 में लखनऊ से छप भी चुकी है। ज़ाएक़े के लिये कुछ शेर देखिये –

मग़्ज़ बादाम से है बेहतर आम | जिस का बे दाम बंदा है बादाम।
तुख़्म शीर ओ शकर में पलता है | बन के तब शहद फल निकलता है।
जब कि ये झूलते हैं शाख़ों पर | हूरें गाती हैं अपने काख़ों पर।
अब्र मस्ताना वार झूमता है | शौक़ से मुंह को उनके चूमता है।
...    ...
आम क्या हैं ख़ुदा की कुदरत हैं | जिन से हिंदोस्तान जन्नत है॥
{मग़्ज़: गूदा; तुख़्म: बीज; काख़: बारामदा या गैलरी; अब्र: बादल}
Lucknow : the City of Mangoes