आबदारख़ाना – नाम सुना है कभी??? मुश्किल से ही कोई हाँ कहेगा। आज तो हमें बावर्चीख़ाना तक सुनाई नहीं पड़ता जो कि घर घर की बात है। हर जगह किचन हो गया है। तो आबदारख़ाना क्या सुनाई पड़ेगा जो नवाबों और अमीरों की बात थी।
आबदारख़ाना, यानि कि पीने के पानी का इंतेज़ाम या उसको रखने की जगह। बाक़ाएदा इसके दारोग़ा होते थे, यानि कि इनचार्ज और उनके नीचे मुलाज़िमों की फौज। पानी कोरे घड़ों में भर कर रखा जाता। पीने के लिये ख़ूबसूरत आबख़ोरे (अरे कुल्हड़ मत कहिये जनाब। आबख़ोरा में जो नवाबी झलकती है वह लफ़्ज़ कुल्हड़ में कहाँ) रखे जाते। घड़ों पर लाल रंग का कपड़ा चढ़ा दिया जाता था और उसे हमेशा पानी से तर रखा जाता था। हवा जितनी गरम होती थी, घड़े का पानी उतना ही ठंडा होता था। यह तरीक़ा हम अब भी प्याऊ पर देखते हैं।
सुराहियाँ लखनऊ की मिट्टी से हमेशा बेहतरीन बनी हैं, या झज्झर, जिनके मुंह पर कपड़ा बांध कर पेड़ों की डालियों पर उल्टा लटका देते थे। बरसात के मौसम में यह सब काम न आता, तो घड़ों को रस्सी से बांध कर कुएं के पानी में डुबा कर रखते थे। वक़्त के साथ नवाबी ख़त्म हो गई, नवाब नहीं रहे। आबदारख़ाने भी नहीं रहे।
आबदारख़ाना, यानि कि पीने के पानी का इंतेज़ाम या उसको रखने की जगह। बाक़ाएदा इसके दारोग़ा होते थे, यानि कि इनचार्ज और उनके नीचे मुलाज़िमों की फौज। पानी कोरे घड़ों में भर कर रखा जाता। पीने के लिये ख़ूबसूरत आबख़ोरे (अरे कुल्हड़ मत कहिये जनाब। आबख़ोरा में जो नवाबी झलकती है वह लफ़्ज़ कुल्हड़ में कहाँ) रखे जाते। घड़ों पर लाल रंग का कपड़ा चढ़ा दिया जाता था और उसे हमेशा पानी से तर रखा जाता था। हवा जितनी गरम होती थी, घड़े का पानी उतना ही ठंडा होता था। यह तरीक़ा हम अब भी प्याऊ पर देखते हैं।
सुराहियाँ लखनऊ की मिट्टी से हमेशा बेहतरीन बनी हैं, या झज्झर, जिनके मुंह पर कपड़ा बांध कर पेड़ों की डालियों पर उल्टा लटका देते थे। बरसात के मौसम में यह सब काम न आता, तो घड़ों को रस्सी से बांध कर कुएं के पानी में डुबा कर रखते थे। वक़्त के साथ नवाबी ख़त्म हो गई, नवाब नहीं रहे। आबदारख़ाने भी नहीं रहे।
آب دار خانۂ لکھنؤ
آب دار خانہ - نام
سنا ہے کبھی؟؟؟ مشکل سے ہی کوئی ہاں کہے گا. آج تو ہمیں باورچي خانہ تک سنائی نہیں پڑتا جو کہ گھر گھر کی بات ہے. ہر جگہ کِچن ہو گیا ہے. آب دار خانہ کیا سنائی پڑے گا جو نوابوں اور امیروں کی بات تھی.
آب دار خانہ، یعنی کہ پینے کے پانی کا انتظام یا اس کو رکھنے کی جگہ. باقائدہ اس
داروغہ ہوتے تھے، یعنی کہ اِنچارج اور ان کے نیچے ملازموں کی فوج. پانی كورے گھڑوں
میں بھر کر رکھا جاتا. پینے کے لیے خوبصورت آب خورے (ارے کلہڑ مت کہیے جناب. آب خورہ
میں جو نوابی جھلکتی ہے وہ لفظ کلہڑ میں کہاں) رکھے جاتے. گھڑوں پر سرخ رنگ کا
کپڑا چڑھا دیا جاتا تھا اور اسے ہمیشہ پانی سے تر رکھا جاتا تھا. ہوا جتنی گرم ہوتی
تھی، گھڑے کا پانی اتنا ہی ٹھنڈا ہوتا تھا. یہ طریقہ ہم اب بھی پياؤ پر
دیکھتے ہیں.
سراهياں لکھنؤ کی مٹی سے ہمیشہ ہی بہترین بنی ہیں،
یا جھجھر، جن کے منہ پر کپڑا باندھ کر درختوں کی شاخوں پر الٹا لٹکا دیتے تھے. بارش
کے موسم میں یہ سب کام نہ آتا، تو گھڑوں کو رسی سے باندھ کر کنویں کے پانی میں ڈبو
کر رکھتے تھے. وقت کے ساتھ نوابی ختم ہو گئی. نواب نہیں رہے. آب
دار خانے بھی نہیں رہے.