Sunday, April 10, 2011

Kaisar Bagh, Lucknow

अजीब बाग़ था रश्क-ए बहिश्त कै़सर बाग़
हर एक दरख़्त था मेवे का गै़रत-ए तूबा
चमन लतीफ़ लतीफ़ आब जू नफ़ीस नफ़ीस

वह ठंडी ठंडी हवा और ऊदी ऊदी घटा
सदा-ए नग़मा से गूंजा हुआ था सारा बाग़

हर एक शाख़ से आती थी बाँसुरी की सदा

सहर लखनवी