अजीब बाग़ था रश्क-ए बहिश्त कै़सर बाग़
हर एक दरख़्त था मेवे का गै़रत-ए तूबा
चमन लतीफ़ लतीफ़ आब जू नफ़ीस नफ़ीस
वह ठंडी ठंडी हवा और ऊदी ऊदी घटा
सदा-ए नग़मा से गूंजा हुआ था सारा बाग़
हर एक शाख़ से आती थी बाँसुरी की सदा
हर एक दरख़्त था मेवे का गै़रत-ए तूबा
चमन लतीफ़ लतीफ़ आब जू नफ़ीस नफ़ीस
वह ठंडी ठंडी हवा और ऊदी ऊदी घटा
सदा-ए नग़मा से गूंजा हुआ था सारा बाग़
हर एक शाख़ से आती थी बाँसुरी की सदा
सहर लखनवी
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